Bhanwari Devi Biography in Hindi – भंवरी देवी

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भंवरी देवी
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भंवरी देवी

भंवरी देवी

जब-जब बहुजन समाज में महिलाओं के आत्मसम्मान की बात आती है तो सबके दिमाग में सबसे पहले नाम फूलन देवी का आता है लेकिन इसी कड़ी में एक नाम भंवरी देवी का भी है। भंवरी देवी एक ऐसा नाम है जिन्होंने अपने आत्मसम्मान के लिए लड़ाई तो लड़ी लेकिन उनका नाम गुमनाम ही रह गया। भंवरी देवी ने भारत में महिलाओं को आत्मसम्मान के लिए लड़ना सिखाया और भारत में रेप केस के लिए नया कानून बनवा डाला था। आज के समय में भंवरी देवी एक ऐसा नाम बन चुकी है जिन्होंने हर दर्द सहा लेकिन अपना हौंसला कभी नहीं छोड़ा और अपने आत्मसम्मान और स्वाभिमान के लिए लड़ती रही।
भंवरी देवी का जन्म जयपुर से थोड़ी दूर भटेरी गांव में एक कुम्हार परिवार में हुआ था। जब भंवरी देवी 11 साल की थी तो उनकी मां की मृत्यु हो गई थी। भंवरी देवी अपने चार भाई बहनों में सबसे बड़ी थी। अपनी मां की मृत्यु के बाद भंवरी देवी के ऊपर सारी जिम्मेदारी आ गई थी, जब भंवरी देवी 15 साल की हुई तो उनका गौना कर दिया गया और कुछ समय बाद वह अपने ससुराल चली गई। उनके ससुराल में उनका जीवन अच्छा चल रहा था लेकिन एक दिन अचानक उनके साथ वह हुआ जिसकी कल्पना भी शायद भंवरी देवी ने कभी नहीं की होगी। बात 1948 की है जब राजस्थान सरकार ने महिला विकास कार्यक्रम शुरू किया था। इस कार्यक्रम को ‘‘ साथिन आंदोलन‘‘ का नाम दिया गया था। इस आंदोलन के तहत हर गांव में से एक महिला को ट्रेनिंग दी जाती थी। भंवरी देवी ने भी यहां से ट्रेनिंग ली और ट्रेनिंग लेने के बाद ही इसमें सिखाई गई बातों का उन्होंने अपनी असल जिंदगी में अमल करना शुरू कर दिया। भंवरी देवी ने जैसे ही इन सब बातों पर अमल करना शुरू किया तभी से उनकी जिंदगी में परेशानी आनी शुरू हो गई थी। असल में इस ट्रेनिंग के तहत भंवरी देवी को यह बताया गया था कि लड़के लड़कियों में भेद ना करें, बाल विवाह के दुष्परिणाम क्या होते है, लड़कियों को भी शिक्षित करना कितना जरूरी है और न्यूनतम मजदूरी के पक्ष में खड़ा होने का लाभ क्या होता है। ये सभी बातें भंवरी देवी को ट्रेनिंग के तहत समझाई गई थी। भंवरी देवी ने ठीक वैसा ही किया जैसा उन्हें ट्रेनिंग में समझाया जाता था।

भंवरी देवी काफी मेहनती थी इसलिए अपने घर को चलाने के लिए वह ट्रेनिंग के साथ-साथ मजदूरी भी करती थीं। एक बार भंवरी देवी को उनकी मजदूरी का वेतन नहीं मिल पाया था, इस कारण वह बहुत ज्यादा परेशान हो गई थीं। सभी लोगों ने भंवरी देवी को तहसीलदार से बात करने को कहा क्योंकि भंवरी देवी जी साथिन थीं। लेकिन भंवरी देवी की बातों का तहसीलदार पर कोई भी असर नहीं हुआ और वह बार-बार बात को टालता ही रहा तो आखिर भंवरी देवी ने भी उसके खिलाफ मोर्चा खोल दिया। भंवरी देवी के द्वारा लंबी लड़ाई लड़ने के बाद आखिरकार उनको और उनके साथियों को न्याय मिल गया। इस घटना के बाद भंवरी देवी के ऊपर सभी लोगों का भरोसा बढ़ गया। सभी लोगों को यह लगने लगा था कि भंवरी देवी लड़ भी सकती हैं और जीत भी हासिल कर सकती हैं। उस समय गांव में बाल-विवाह की समस्या भी बहुत प्रचलित थी। सरकार ने एक आदेश भी निकाला था कि बाल-विवाह एक अपराध है और इस आदेश का प्रचार करने के लिए भंवरी देवी को साथिन के तहत प्रचार करना था। भंवरी देवी अपने इस मकसद में कामयाब भी हुई। उन्होंने 50 से ज्यादा बाल विवाह रुकवा दिए थे। लेकिन एक दिन एक गुर्जर परिवार अपने 9 साल की बेटी की शादी की तैयारी कर रहा था और इस बात की जानकारी भंवरी देवी तक पहुंच गई। भंवरी देवी ने इस शादी को रोकने की ठानी, उन्होंने उस गुर्जर परिवार को समझाया लेकिन इस परिवार ने भंवरी देवी को अपमानित कर दिया। गुर्जर परिवार को यह बात खटक गई कि कुम्हार जाति की महिला हमें समझा रही है।

उन्होंने भंवरी देवी को अपमानित कर अपने घर से भगा दिया। बाद में इस बात की जानकारी पुलिस को भी मिल गई थी और पुलिस ने अपने प्रयासों से इस बाल विवाह को रुकवा दिया था। यह बात आगे बढ़ने के बाद गुर्जर परिवार के लोग और भी ज्यादा गुस्से में आ गए और इन सब का दोषी उन्होंने भंवरी देवी को ठहराया। अपने गुस्से के कारण उन्होंने भंवरी देवी को सबक सिखाने की ठान ली। गुर्जर परिवार के द्वारा पंचायत बुलाई गई और भंवरी देवी का सामाजिक बहिष्कार कर दिया। बहिष्कार करने के बाद भंवरी देवी की जिंदगी पूरी तरीके से बदल गई थी अब भंवरी देवी के पति मोहन को मजदूरी के लिए दूसरे गांव जाना पड़ता था। भंवरी देवी का सामाजिक बहिष्कार करने के बाद भी गुर्जरों का गुस्सा शांत नहीं हुआ था और 22 सितंबर 1993 को जब भंवरी देवी और उनके पति मजदूरी करके वापस घर लौट रहे थे तो गुर्जरों द्वारा भंवरी देवी का सामूहिक बलात्कार कर दिया गया। जब गांव में इस बात का पता चला तो सभी के द्वारा सहानुभूति दिखाई गई लेकिन भंवरी देवी को इंसाफ नहीं मिला। जब यह मामला आगे बढ़ता गया तो भंवरी देवी पर इस मामले को दबाने का दबाव दिया जा रहा था। भंवरी देवी के द्वारा किए गए सभी प्रयासों के बावजूद भी भंवरी देवी की कोई दलील नहीं मानी गई और उल्टा उन्हें ही दोषी ठहराया गया। लेकिन भंवरी देवी ने हार नहीं मानी और उन्होंने अपने लड़ाई को जारी रखा और 27 सितंबर 1993 को सीबीआई की रिपोर्ट आ गई जिसमें भंवरी देवी की बात सच निकली। मामला कोर्ट तक पहुंच गया लेकिन वहां से भी भंवरी देवी को न्याय नहीं मिला और यहां तक कि अदालत के फैसले में तो यह भी कह दिया था कि ऊंची जाति के लोग नीची जाति की महिला का बलात्कार नहीं कर सकते। अदालत द्वारा दी गई इस दलील ने सभी लोगों को हैरत में डाल दिया था।

डॉ मोहिनी सिंह

डॉ मोहिनी सिंह

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